रजमा व्यथित हुई
बांवरी दौड के आई
आंसु रोक ना पाई
मेरा दर्द कीसे दिखाउं
दास्तां मेरी कीसे सुनउं
मेरा पती सिर्फ नामका है
मेरे न कुछ कामका है
नहीं देखता घरसंसार
उठत बैठत जागत सोवत
एक ही नाम की है पुकार
क्रुष्ण पांडुंरंग विठ्ठला
क्रुष्ण पांडुरंग विठ्ठला
रुक्मी के पास जा पहोंची
रुक्मी तू कर मेरा न्याय
उलज़नमें हुं मैं परेशान
रजमा तेरी बात निराली
तेरी मेरी एक कहानी
सहमी सिकुडी और बोली
क्या तेरी सुलझाऊं पहेली
नंगे पैर दौडे गिरिधर
जब सुने तूकाकी बानी
मैं उनके पीछे भागुं
हरिवरको पहोंच न पाऊं
रजमाकी आंखे खुली
हरख से बोली घेली
क्रुष्णा पांडुरग़ विठ्ठला
क्रुष्णा पांडुरंग विठ्ठला
रुकमी– रजमा
February 23rd, 2007 by pravinash Leave a reply »
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