Archive for February 23rd, 2007

रुकमी– रजमा

February 23rd, 2007

caa3c58f.jpgcaraxb1l.jpg 

 रजमा व्यथित हुई
    बांवरी दौड के आई
    आंसु रोक ना पाई
    मेरा दर्द कीसे दिखाउं
    दास्तां मेरी कीसे सुनउं
    मेरा पती सिर्फ नामका है
    मेरे न कुछ कामका है
    नहीं देखता घरसंसार
    उठत बैठत जागत सोवत
    एक ही नाम की है पुकार
    क्रुष्ण पांडुंरंग विठ्ठला   
    क्रुष्ण पांडुरंग विठ्ठला
    रुक्मी के पास जा पहोंची
    रुक्मी तू कर मेरा न्याय
    उलज़नमें हुं  मैं परेशान
    रजमा तेरी बात निराली
    तेरी मेरी एक  कहानी
    सहमी सिकुडी और बोली
    क्या तेरी सुलझाऊं पहेली
    नंगे पैर दौडे गिरिधर
    जब सुने तूकाकी बानी
    मैं उनके पीछे भागुं
    हरिवरको पहोंच न पाऊं
    रजमाकी आंखे  खुली
    हरख से बोली घेली
    क्रुष्णा पांडुरग़ विठ्ठला
    क्रुष्णा पांडुरंग विठ्ठला  

Type in

Following is a quick typing help. View Detailed Help

Typing help

Following preferences are available to help you type. Refer to "Typing Help" for more information.

Settings reset
All settings are saved automatically.